छत्रपति शिवाजी महाराज {भाग-2}

छत्रपति शिवाजी महाराज

छत्रपति शिवाजी महाराज को आगरा में कैद

छत्रपति शिवाजी महाराज ने अब तक 35 दुर्ग जीत लिए थे। इस कारण औरंगजेब बहुत परेशान था। औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह जो आमेर के राजा थे। उनको मध्यस्थ रखकर शिवाजी और औरंगजेब के बीच में 11 जून 1965 में संधि हुई। संधि की शर्ते

1 छत्रपति शिवाजी महाराज को 35 दुर्ग मैसेज 23 दुर्ग वापस औरंगजेब को लौटाना

इन 23 दुर्गों की वार्षिक आय 40 लाख रुपए थी।

2 संभाजी को ₹5000 सालाना मनसबदारी

3 छत्रपति शिवाजी महाराजमनसबदारी से मुक्त थे लेकिन जब औरंगजेब बुलाए तो उनको हाजिर होना पड़ेगा

इन शर्तों पर संधि हुई

कुछ ही समय बाद औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया। तब मिर्जा राजा जयसिंह ने शिवाजी के प्राण और आबरू की रक्षा की गारंटी दी और उन्हें आगरा अपने पुत्र राम सिंह के साथ सम्मान पूर्वक पहुंचाया गया। आगरा में छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ नाइंसाफी हुई। जो शिवाजी को सम्मान की अपेक्षा थी वह सम्मान नहीं दिया।

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और शिवाजी ने नाराज होकर भला-बुरा औरंगजेब को कह दिया। औरंगजेब रुष्ट होकर शिवाजी को और संभाजी को कैद कर दिया। महीनों तक केंद मे रहने के बाद शिवाजी ने एक योजना बनाई और बीमारी का बहाना कर फलों की टोकरी मैं बैठकर दुर्ग से निकल गए। शिवाजी आगरा से मथुरा होकर सीधे रायगढ़ पहुंचे। इस तरह औरंगजेब ने संधी तोड़ दी।

छत्रपति शिवाजी महाराज का आगरा से भाग जाने का पूरा सक औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह पर किया और मिर्जाराजे को जहर देकर मार दिया और राम सिंह को औरंगजेब के दरबार में आने की अनुमति भी छीन ली। तो फिर शिवाजी ने कोंडाणा जीतने की इच्छा जाहिर की।  23 किल्ले वापस प्राप्त करना शुरू कर दिया।

कोंढाणा दुर्ग (सिहागढ़)

1670 की शुरुआत में छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक सरदारों की सभा बुलाई और उसमें कोंढाणा किला  को जीतने का प्रस्ताव रखा। तानाजी मानुसरे ने उस किल्ले को जीतने का आश्वासन दिया। तब शिवाजी ने तानाजी मानुसरे को यह कमान सौंप दी और 300 मावलों के साथ 4 फरवरी 1670 की वह रात कोंडाणा पर विजयश्री प्राप्त की।

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कोंडाणा दुर्ग धरातल से 750 मीटर  और समुद्र तल से 1300 मीटर की ऊंचाई पर कुल्हाड़ी आकार में था। दुर्ग पर चढ़ने के दो ही रास्ते थे एक पुणे दरवाजा और एक कल्याणी दरवाजा। भौगोलिक दृष्टि से कोंढाणा का दुर्ग पश्चिमी द्रोणागिरी पहाड़ियों पर सीधा था।

 4 फरवरी 1970 की रात को तानाजी मानुसरे और 300 मावलों ने द्रोणागिरी पर्वत पर घौड की सहायता से चढ़ाई शुरू की और कोंडाणा में युद्ध हुआ। कोंढाणा किले में हर हर महादेव के नारे लगने शुरू हुए युद्ध उदय भान राठौड़ और तानाजी मालनुसरे के बीच लड़ा गया। उदय भान राठौड़ भिनाय अजमेर के शासक थे।

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वे 1500 सैनिकों के साथ कोंडाणा के सूबेदार थे ।इधर तानाजी के 300 मावले  उदय भान और उसकी सेना पर टूट पड़े और नरसंहार हुआ ।इस युद्ध में तानाजी मलूसरे का ढाल टूट गया और फिर उन्होंने अपने हाथ को ढाल बनाकर उदय भान राठौर को मार दिया और खुद भी इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए ।

जब यह  कोंढाणा जीता गया तो आसपास की पहाड़ियों में नीचे घास को जलाया गया ताकि छत्रपति शिवाजी महाराज को सिंह गढ़ मैं पता चले कि कोंडाणा जीत लिया है। कोंढाणा दुर्ग जीत के बाद एक सैनिक को संदेश के रूप में भेजा और उसने कहा जी महाराज की जय हो

कोंडाणा आला ,

पण सिंह गेला

तब छत्रपति शिवाजी महाराज ने कोंडाणा दुर्ग का नाम सिहागढ़ के नाम से रख दिया। और तानाजी को हमेशा के लिए अमर कर दिया।

छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु

एक लंबी बीमारी के कारण 53 वर्ष की अवस्था में 1680 में इस अद्भुत वीरता छत्रपति शिवाजी महाराज का परलोक वास हुआ।

 गौ, ब्राह्मण और धर्म की रक्षा के लिए समस्त प्रयत्न था लेकिन उसमे धार्मिक द्वेश का नाम नहीं था वे महान छत्रपति शिवाजी महाराज शूरवीर होने के साथ-साथ अतिशय उदार भी थे।

धर्म और गौ ब्राह्मण रक्षा। है पुनीत क्षत्रिय की दीक्षा।।

प्राण मोह है कायर करता। नहीं वीर मरने से डरता।।

 वीर वही सच्चा कहलाता। धर्म हेतु जो शीश कटाता।।

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छत्रपति की उपाधि

1674 ईस्वी में शि का रायगढ़ में राज्याभिषेक हुआ।छत्रपति उपाधि से नवाजा गया। धीरे-धीरे उनका राज्य पश्चिम में गोवा तक विस्तृत हो गया कोकण नाशिक ,पुणे आदि अनेक राज्यों में आ गया ।

लेकिन जब समर्थ स्वामी रामदास भीक्षा लेने राज्य द्वार पहुंचे तो शिवाजी ने पूरा राज्य गुरुदेव की भेंट कर दिया। श्री समर्थ ने समझाने पर वे अपने को उसका प्रतिनिधि मानकर राज कार्य करते रहे। यह सब श्री समर्थ का है यह सूचित करने के लिए अपने झंडे का रंग भीगेरुआ रखा।

 शासन व्यवस्था

शिवाजी की शासन व्यवस्था बहुत ही सुंदर थी प्रजा में हिंदू-मुस्लिम कोई पक्षपात नहीं करते थे मुसलमानों को मस्जिद बनाने की पूरी स्वतंत्रता थी। युद्ध में भी स्त्रियों की मर्यादा एवं पुराण के सम्मान का विशेष ध्यान रखा जाता था ।अनेक मुसलमान उनकी सेना में थे। स्वराज्य प्रेम उस उनका एक मूल मंत्र था।

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 शंभूराजे

देश धर्म पर मिटने वाला शेर शिवा का छावा था

महा पराक्रमी , परम प्रतापी एक ही शंभू राजा था ।।

Read   छत्रपति शिवाजी महाराज {भाग-1}

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