राणा सांगा{संग्राम सिंह}की जीवनी |शासकीय नीतियां, राज्याभिषेक , साम्राज्य विस्तार और पाती परवन प्रथा
राणा सांगा बहादुर हिंदू सम्राट थे.
राणा सांगा एक बहादुर वीर योद्धा थे। बाद में उन्हें हिंदू सम्राट की उपाधि मिली। राणा सांगा का बचपन का नाम संग्राम सिंह है। राणा सांगा रायमल रावल के छोटे पुत्र थे उनका बचपन अजमेर के जंगलों में बीता और जवानी भारत को आजाद कराने और और लक्ष्य चक्रवर्ती सम्राट बनने में बीता। राणा सांगा के कुल 11 भाई थे और 2बहने । पृथ्वीराज और जयमल बड़े भाई थे।
राणा सांगा ( महाराणा संग्राम सिंह ) |
जन्म : 12 April 1482 , चित्तौरगढ़ |
मृत्युः 30 जनवरी , 1528 माण्डलगढ ( भीलवाड़ा ) |
पिता : राणा रायमल रावल |
बच्चे : भोजराज , रतन सिंह , विक्रमादित्य सिंह, उदय सिंह |
जीवनसंगी : रानी कर्णावती/ कर्मावती |
रानी कर्णावती के बच्चे: विक्रमादित्य सिंह , उदय सिंह |
राष्ट्रीयता : भारतीय |
धर्म : हिन्दू |
सांगा के शरीर पर कुल 80 घाव थे और एक आंख ,एक पैर और एक हाथ नहीं थे।महाराणा सांगा एक बुद्धिमान प्रतापी बाहुबली और कुशल शासक था। जिन्होंने कुछ ही समय के भीतर सिंध से लेकर बयाना तक हुकूमत कर ली। राणा सांगा ने समस्त राजपूत हिंदू राजाओं को एकत्रित कर एक ध्वज के नीचे विराजमान किया। और उन से वैवाहिक संबंध स्थापित किए और एक पाती परवन की प्रथा चलाई जिससे युद्ध में हर एक का सहयोग हो।
महाराणा सांगा के 4 पुत्र थे। सबसे बड़ा भोजराज फिर रतन सिंह और विक्रमादित्य और उदय सिंह। विक्रमादित्य और उदय सिंह रानी कर्मावती के पुत्र थे । कर्मावती को रणथंबोर सांगा ने दिया। वही विक्रमादित्य और उदय सिंह का लालन-पालन हुआ। 30 जनवरी 1527 राणा की मृत्यु से पहले ही युद्ध भूमि में राणा के जेष्ठ पुत्र भोजराज युद्ध भूमि में मौत हो चुकी थी ।
फिर रतन सिंह मेवाड़ का राजा बना। रतन सिंह महाराणा जैसा बहादुर और निडर सम्राट नहीं था। महाराणा की मृत्यु के बाद कर्मावती ने अपने पुत्रों को राजा बनाने के लिए रतन सिंह के खिलाफ षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। रतन सिंह मृत्यु के बाद विक्रमादित्य को कर्मावती ने राजा बनाया। महाराणा सांगा की वीरता का बखान बाबर ने भी अपनीबाबरनामा में बखूबी से किया है उनकी तलवार और युद्ध कौशल्य का बहुत बखान किया है।
खाकर सांगा डिल पर ,घातक 80 घाव ।
बाबर से लड़ते रिहो ,दे मूछों पर ताव।।
कर्नल जेम्स टॉड ( राजस्थान के इतिहास के जनक) सैनिकों का भग्नावशेष से नवाजा है
भविष्यवाणी बनी कलह का कारण
रायमल रावल के 11 पुत्र थे। पृथ्वीराज, जयमल और संग्राम सिंह मुख्य थे। रायमल रावल अपना मुख्य उत्तराधिकारी नहीं तय कर पा रहे थे । काका सारंगदेव ने समझाया और कहां की एकलिंग जी के पूर्व दिशा में नाहर मगरा के पास भिमल गांव की एक चारण कन्या बीरी है जो आपको सटीक भविष्यवाणी बताएगी।
वहां मंदिर में पहुंचे और पृथ्वीराज और जयमल उच्च स्थान पर विराजमान हुए वहीं संग्राम सिंह को बैठने के लिए कुछ नहीं मिला तो शेर की खाल पर बैठ गया। बारी ने पूछा बताइए आप की क्या समस्या है। काका सारंगदेव ने कहा कि मेवाड़ का सम्राट कौन होगा?तब बारी ने बताया कि जो शेर की खाल पर बैठा हुआ बच्चा है वह मेवाड़ का सम्राट होगा। इस बात को सुनकर पृथ्वीराज को गुस्सा आया और उन्होंने कटार से संग्राम सिंह पर वार कर दिया और संग्राम सिंह की एक आंख चली गई।
और वहां से संग्राम सिंह घायल अवस्था में भाग गया। संग्राम सिंह वहां से भागकर चेवंत्री गांव में देवनारायण मंदिर पहुंचा वहां उन्हें विदा जैतमलोत मिले। उन्होंने संग्राम सिंह की सहायता की और जयमल से युद्ध लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुए ।संग्राम सिंह वहां से भागकर अजमेर के पास श्रीनगर के करमचंद पवार के पास पहुंचे। करमचंद ने संग्राम सिंह की सहायता की । फिर संग्राम सिंह मेवाड़ के सम्राट बने।
राज्या अभिषेक और साम्राज्य विस्तार
पृथ्वीराज और जयमल की मृत्यु के बाद उनके पिता रायमल रावल ने संग्राम सिंह को बुलाया और राज्य अभिषेक किया। महाराणा ने गद्दी संभालते ही सिंध, बयाना ,सतलज ,मालवा भरतपुर ,ग्वालियर ,उत्तर गुजरात एवं संपूर्ण राजपूताना पर अपना वर्चस्व जमा लिया। और बूंदी ,मालवा ,बीकानेर ,आमेर बागड़ से वैवाहिक संबंध स्थापित किए और करमचंद पवार को अजमेर का मुख्य सरदार घोषित किया।
राजपूताना के मुख्य द्वार मजबूत किए। सांगा ने गद्दी संभाली तब गुजरात के सरदार मोहम्मद शाह और मालवा के नासिर शाह खिलजी 2 औरदिल्ली में सिकंदर लोदी राजा थे। महाराणा के साथ 7 बड़े राजा ,9 राव और104 छोटे सरदार और लाखों की सेना थी।
1520मे राणा ने ईडर के शासक बानमल को हटाकर रायमल को बिठाया। बाणमल का संबंध मुजफ्फर शाह से था जो गुजरात के शासक थे ।उधर मांडू प्रदेश में खिलजी का शासन था। खिलजी के शासन में एक मेदनी राय का नाम का एक सरदार था जिसे खिलजी की नीतियां पसंद नहीं थी तो वह राणा सांगा से जा मिला।महाराणा ने मेदनी राय को चंदेरी और मालवा राज्य का राजा बनाया।
1518 में मालवा के सुल्तान मोहम्मद खिलजी गागरोन पर आक्रमण कर दिया इस युद्ध में राणा सांगा ने खिलजी के सभी सरदारों को मार डाला और खिलजी को कैद कर दिया । खिलजी 2को बंदी बनाकर अजमेर लाया। फिर खिलजी से कुछ कर लेकर उसे मुक्त कर दिया जिससे खुश होकर खिलजी ने एक सोने का कमरबंद (बेल्ट) राणा को भेट किया ।
पाती परवन प्रथा
महाराणा सांगा ने मेवाड़ का सिंहासन संभालते ही समस्त आसपास के हिंदू राजपूत शासकों को एकजुट करने के लिए पाती परवन की प्रथा शुरू की। समस्त हिंदू शासकों को एक ध्वज के नीचे लाने के लिए पाती परवन प्रथा शुरू की। इसमें मालवा के नरेश मालदेव राठौड़, बुन्दी बागड़ उदयसिंह, अजमेर एवं आमिर के पृथ्वीराज, बीकानेर के कल्याणमल एवं हसन खान मेवाती मिलकर पाती परवन के कारण ही 16 फरवरी 1526 में बाबर को हराया।
पाती परवन का उद्देश्य था कि युद्ध भूमि में जब युद्ध करने जाए तब प्रत्येक राजपूत शासक अपने अपना-अपना हिस्सा उस युद्ध में सिपाहियों और सेनापतियों के रूप में सहयोग करें। इसी नीति के कारण महाराणा सांगा हमेशा युद्ध में विजय श्री प्राप्त किए। राणा सांगा ने इन आसपास के सभी राजपूतों से अपने वैवाहिक संबंध स्थापित किए । यह नीति राणा सांगा के साम्राज्य विस्तार के लिए एक उपयोगी नीति रही।
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