महाराणा सांगा और बाबर का युद्ध|खातोली का युद्ध, बाड़ी का युद्ध और मृत्यु

महाराणा सांगा और बाबर का युद्ध|खातोली का युद्ध, बाड़ी का युद्ध और मृत्यु

खातोली का युद्ध

महाराणा सांगा का वर्चस्व बढ़ रहा था और राणा की महत्वाकांक्षा थी कि वह दिल्ली का सम्राट बने। सांगा का पूरा ध्यान दिल्ली पर था। सांगा की बढ़ती हुई ख्याति और राज्य विस्तार को देखकर इब्राहिम लोदी तिलमिला गया। और चित्तौड़ पर चढ़ाई की 1517 खातोली के मैदान में इब्राहिम लोदी और राणा सांगा का युद्ध  हुआ।

राणा सांगा बड़ी निडरता से युद्ध लड़े और इब्राहिम लोदी को परास्त कर दिया लेकिन दुर्भाग्य से इस युद्ध में सांगा का एक हाथ और एक पैर में तीर लगने से पैर बेकार हो गया।

 महाराणा-सांगा bantiblog.com

सांगा ने इब्राहिम लोदी को बंदी बनाकर 6 महीने आपने कैद में रखा। युद्ध में इब्राहिम लोदी के बहुत से सूबेदार मारे गए और भयंकर नुकसान हुआ। बाद में महाराणा सांगा ने उदारता दिखाते हुए इब्राहिम लोदी को रिया कर दिया। रिया होने के बाद इब्राहिम लोदी इस हार का बदला लेने के लिए 2 वर्ष तक सैन्य शक्ति जमा की और फिर से सांगा पर आक्रमण करने की फिराक में था।

बाड़ी का युद्ध

1517 में हारने के बाद इब्राहिम लोदी ने 2 वर्ष तक सैन्य शक्ति जमा की और 1519 में फिर से राणा सांगा से युद्ध करने के लिए अपने 2सेनापति मियां मक्कम और मियां हुसैन को राणा सांगा को परास्त करने के लिए भेजा।

बाड़ी के मैदानों में युद्ध हुआ जिसमें सांगा के सैनिकों ने  लोधी की सेना को परास्त किया और मियां मक्का मोर मियां हुसैन के सर काटकर धौलपुर के बुर्ज पर लगा दिए। सांगा  की विशाल सेना थी जिसमें 7 बड़े राजा, 9 राव 104 छोटे सरदार  हाजिरी लगाते थे।

 मालदेव ने सांगा को समस्त हिंदुओं का पालनहार कहते हुए हिंदु पति की उपाधि से नवाजा और पृथ्वीराज की तरह हाथी पर चढ़ने का निवेदन किया।बाड़ी के युद्ध के अलावा और महाराणा सांगा ने कई और युद्ध लड़े जिसमें खातोली का ,युद्ध बयाना का युद्ध और खंडवा का युद्ध इतिहास में प्रसिद्ध है। महाराणा सांगा ने अपनी वीरता से ना कि सिर्फ राजस्थान में बल्कि पूरे भारतवर्ष में अपना लोहा मनवाया।

1518 में मालवा के सुल्तान मोहम्मद खिलजी गागरोन पर आक्रमण कर दिया इस युद्ध में राणा सांगा ने खिलजी के सभी सरदारों को मार डाला और खिलजी को कैद कर दिया। खिलजी 2को बंदी बनाकर अजमेर लाया। फिर खिलजी से कुछ कर लेकर उसे मुक्त कर दिया जिससे खुश होकर खिलजी ने एक सोने का कमरबंद (बेल्ट) राणा को भेट किया ।

बाबर से युद्ध

बाबर फतेहपुर सीकरी पर डेरा डालकर बयाना पर अपना अधिकार जमा लेता है। बयाना का मेवाड़ी सरदार भागकर महाराणा सांगा के दरबार में आता है। और राणा सांगा ने सभी हिंदू राजपूत शासकों को संदेश भेजकर पाती परवन के द्वारा एक ध्वज के नीचे एकत्रित होने के लिए आमंत्रित करता है और 16 फरवरी 1526 में बाबर को हरा देता है ।

 महाराणा-सांगा bantiblog.com

इस युद्ध में मालवा मारवाड़ नरेश मालदेव राठौर ने यह रणनीति तय की की बूंदी बागड़ से  उदयसिंह, अजमेर आमेर के पृथ्वीराज और बीकानेर के कल्याणमल और हसन अली मेवाती ने 16 फरवरी 1526 में बाबर को हराया।

 बाबर की प्रथम हार थी ।बाबर की सेना हताश होकर वापस काबुल जाने लगी तब बाबर ने उनको बहुत रोकना चाहा। लेकिन वह नहीं मान रहे थे तब बाबर ने अपना अपार धन उन्हें भेंट किया और लालच दिया कर मुक्त किया फिर भी वह नहीं मान रहे थे ।तब उसने धर्म जिहाद का नारा दिया और फिर से सेना में एक उत्साह भर दिया।

उसी समय महाराणा सांगा को दिल्ली पर आक्रमण करना चाहिए था ।लेकिन सांगा ऐसा नहीं किया। जिसके परिणाम स्वरूप 1 महीने के अंदर ही बाबर ने फिर से सेना तैयार की और 17 मार्च 1527 में खानवा पर धावा बोल दिया। बाबर ने भरतपुर के मैदानों में कई दिन पूर्व ही तैयारी शुरू कर दी थी। राणा को पता चला तो राणा युद्ध के 2 दिन पूर्व ही वहां पहुंचे एक तरफ बाबर कई दिनों से पूरी योजना तय कर चुका था और एक तरफ राणा को योजना तय करने बाकी थी।

राणा सांगा की विशाल सेना होने के कारण पूरी सेना पर आधिपत्य नहीं कर पा रहे थे वही बाबर इस अपनी सेना पर पूरा अधिपत्य था और अनुशासित थी।

17 मार्च 1527 को बाबर ने खानवा में धौलपुर के पास के मैदानों में सांगा से युद्ध किया। राणा की विशाल सेना थी लेकिन बाबर की सेना कम थी ।लेकिन बाबर के पास तो तोप खाना था जिसका नेतृत्व अली और मुस्ताक कर रहे थे। बाबर की तोपों के आगे राणा सांगा के सैनिक टिक नहीं पाए और कुछ ही घंटों में राणा की सेना को तहस-नहस कर दिया।

राणा को तोपों के बारे में कुछ पता ही नहीं था उस समय तो तलवारों से युद्ध लड़ा जाता। अस्र – शस्र ही नहीं बल्कि बाबर की तुलुगमा और अरबा ( Araba ) की रणनीति ने भी उसे जीत के लिये प्रेरित किया । तुलुगमा युद्ध नीति : इसका अर्थ था पूरी सेना को विभिन्न इकाइयों- बाएँ , दाहिने और मध्य में विभाजित करना । बाएँ और दाहिने भाग को आगे तथा अन्य टुकड़ियों को पीछे के भाग में विभाजित करना ।

 राणा भी मूर्छित हो गए। जाला- आजजा‌ ने महाराणा सांगा को सुरक्षित बाहर निकाला और खुद राणा सांगा के वस्त्र धारण कर हाथी पर सवार हो गए और सेना का नेतृत्व किया। शाम होते होते राणा सांगा की हार हो गई थी। जब महाराणा सांगा मूर्छित अवस्था से बाहर निकले तब उन्हें पता चला है कि उन्हें उन्हें युद्ध भूमि से बाहर लाया गया है तो वह बहुत नाराज हुए और तुरंत बाबर पर फिर से हमला करने के लिए कालपी की तरफ चल दिए।

और महाराणा सांगा ने प्रण लिया कि जब तक मैं बाबर को नहीं हरा आऊंगा तब तक चित्तौड़ नहीं जाऊंगा। राणा सांगा की इस हट धर्मी के कारण ही उनके सूबेदारओं ने उन्हें खाने में जहर दे दिया और कालपी  में उनकी मृत्यु हो गई। 30 जनवरी 1528 में महाराणा सांगा हमेशा के लिए इस भारतवर्ष को छोड़ कर चले गए। ऐसे वीर पुरुष को नाम सुनते ही आज भी हम गौरवान्वित होते हैं।

युद्ध जीतने के बाद बाबर ने अपना आपको गाजी की उपाधि से नवाजा। इस के बाद  बाबर ने खुद राणा सांगा की तारीफ की और उनके तलवार उनकी बहादुरी का बखान किया है बाबर ने अपनी पुस्तक तुजुक-ए-बाबरी मै

राणा सांगा की मृत्यु

राणा सांगा ने 1509 से 1528 तक मेवाड़ पर शासन किया। 17 मार्च 1527 को महाराणा सांगा की खानवा में बाबर के हाथों  पराजय हुई। इस युद्ध में राणा सांगा मूर्छित हो गए थे और उन्हें सहयोगी राजाओं ने बड़ी चतुराई से युद्ध क्षेत्र से बाहर निकाल दिया और जाला अज‌्जा ने राणा सांगा का मुकुट एवं वस्त्र धारण कर सांगा का रूप धारण कर हाथी पर सवार होकर सेना का नेतृत्व कर किया।

उधर राणा सांगा मूर्छित अवस्था से बाहर आकर होश में आए तो उन्हें पता चला कि वह हार गए हैं। तो बहुत दुखी हुए। तब राणा ने प्रण लिया कि जब तक में बाबर को नहीं हरा हूं तब तक चित्तौड़ नहीं जाऊंगा और बाबर से फिर से युद्ध करने की तैयारी शुरू की।

 राणा सांगा अब ईरीच का मैदान और कालपी‌ की तरफ रवाना हुए ।उन्हे बाबर से युद्ध करना था। इस हट के कारण सांगा के सहयोगी राजाओं ने एक योजना बनाकर राणा सांगा को जहर देकर 30 जनवरी 1528 को मार दिया। ईरीच में जहर दिया गया और कालपी में मृत्यु हुई। राणा सांगा का अंतिम संस्कार मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) मै हुआ।

 महाराणा-सांगा bantiblog.com

अमर काव्य वंशावली में रणछोड़ भट्ट के द्वारा लिखी गई है। उसमें सांगा का शव मांडलगढ़ लाया तब दोसा के बसवा में सव रखा गया था और वहां भी स्मारक बनाई गई कई विद्वानों का मानना है कि बसवा में ही अंतिम संस्कार हुआ।

राणा सांगा की पुत्रवधू मीराबाई

महाराणा सांगा के जेष्ठ पुत्र भोजराज था जिनका विवाह मेड़ता के राव वीरमदेव के छोटे भाई रतनसिंह की पुत्री मीराबाई के साथ हुआ था । मीराबाई मेड़ता के राव दूदा के चतुर्थ पुत्र रतनसिंह की इकलौती पुत्री थी । बाल्यावस्था में ही उसकी माँ का देहांत हो जाने से मीराबाई को राव दूदा ने अपने पास बुला लिया और वही उसका लालन – पालन हुआ ।

मीराबाई का विवाह वि.स्. 1573 ( ई.स्. 1516 ) में हुआ था।मीराबाई बाल्यकाल से कृष्ण भक्ति  मैं रम चुकी थी ।  पति भोजराज युद्ध भूमि में मारे गए। महाराणा सांगा की मृत्यु के बाद विक्रमादित्य शासक बने तब मीराबाई पर अनेकों अत्याचार किए। अत्याचारों से दुखी होकर मीराबाई द्वारका चली गई।

राणा सांगा{संग्राम सिंह}[भाग1]पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए

3 thoughts on “महाराणा सांगा और बाबर का युद्ध|खातोली का युद्ध, बाड़ी का युद्ध और मृत्यु”

Leave a Comment