छत्रपति शिवाजी महाराज {भाग-1}

छत्रपति शिवाजी महाराज जीवनी

छत्रपति शिवाजी महाराज का बाल्यकाल

छत्रपति शिवाजी महाराज एक बुद्धिमान,, शौर्यवीर ,दयालु एवं चालाक राजा थे। मराठों की भोंसले जाति राजपूतों की सिसोदिया कुल की शाखा है इस भोसले कुल में19 फरवरी 1627 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी में हुआ।

उनके पिता शाहजी भोंसले थे। वे बीजापुर के जागीरदार थे। जीजा बाई उनकी माता थी। माता जीजाबाई बचपन में रामायण और महाभारत की कहानियां शिवाजी को सुनाया करते थे। जीजाबाई धार्मिक एवं तेजस्वी महिला थी।

शिवाजी का लालन-पालन दादा जी कौण देव देखरेख में बीता। गुड सवारी शस्त्र चलाना और शास्त्र की शिक्षा बाल्यकाल में ही प्राप्त कर ली थी। जिससे छत्रपति शिवाजी महाराज को  गौ- ब्राह्मण और धर्म की रक्षा की प्रेरणा मिली।

छत्रपति शिवाजी महाराज

जन्म19 फरवरी, 1630 या अप्रैल 1627 शिवनेरी किला, पुणे जिला, महाराष्ट्र
जाति भोंसले राजपूत
मृत्यु:3 अप्रैल, 1680, रायगढ़
पिता:शाहजी भोंसले
माता:जीजाबाई
जेष्ठ पुत्रसंभाजी, राजाराम
दादाजी कौण देव भोंसले
जीवनसंगी:सईबाई निंबालकर
 पौत्रशाहुजी
राष्ट्रीयता:भारतीय
धर्म :हिंदू

कौन देव के संरक्षण में शिवाजी ने धर्म ,राजनीतिक एवं संस्कृत एवं युद्ध कौशल्य का ज्ञान  प्राप्त किया। संत रामदेव जी ने शिवाजी को राष्ट्रप्रेम, कर्तव्य और कर्मठ योद्धा बना दिया।

छत्रपति-शिवाजी-महाराज--bantiblog.com

करे नहीं हम अत्याचार। किंतु उचित संकट प्रतिकार।।

धर्म और गौ, ब्राह्मण रक्षा है। पुनीत क्षत्रिय की दीक्षा।।

 प्राण मोह है कायर करता। नहीं वीर मरने से डरता।।

 वीर वही सच्चा कहलाता। धर्म हेतु जो शीश कटाता।।

नहीं सताता कहीं किसी को। दुख ना देता कभी किसी को।।

 करता धर्मों का सम्मान ।नारी मर्यादा का मान।।

 देख विपत्ति धर्म और गौ पर। अबला की मर्यादा पर ।।

जो मर मिटने को तैयार ।वही धरा का है श्रृंगार ।।

धर कर मन में प्रभु का ध्यान। हो कर्तव्य शील मतिमान।।

 वही जगत में हुआ महान। सभी जगह पाता सम्मान।।

छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह

छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह 14 मई 1640 में सईबाई निंबालकर से हुआ। छत्रपति शिवाजी महाराज के जेष्ठ पुत्र  जिनका नाम संभाजी था वह सईबाई के ही पुत्र थे। संभाजी आगरा के औरंगजेब के दरबार में भी शिवाजी के साथ ही गए थे

संभाजी की शादी येसुबाई से हुई। संभाजी का एक पुत्र हुआ उसका नाम शाहुजी था। संभाजी ने 1680 से 1689 तक शासन किया।

 जंगल में कई शेर थे, लेकिन सिर्फ एक ही था

जिसने शेर का जबड़ा फाड़ा था।  स्वराज्य की ढकलम धानी “शंभूराजे”।

देश धर्म पर मिटने वाला शेर शिवा का छावा था ।

महा पराक्रमी , परम प्रतापी एक ही शंभू राजा था ।।

छत्रपति शिवाजी महाराज का पराक्रम

युद्ध कौशल में निपुण छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा युवकों को संगठित करना शुरू किया। उन युवकों मावलो नाम से जाना जाता है। मावल  राज्य में सभी जाति के लोग रहते थे। और छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में भी सभी जाति वर्ग के लोग  थे।

उस समय आदिल शाह ने बीजापुर से एवं अन्य कहीं दुर्ग  से अपनी सेना हटा ली थी और वहां के स्थानीय शासकों को सत्ता सौंप दी थी।

छत्रपति-शिवाजी-महाराज--bantiblog.com

छत्रपति शिवाजी महाराज ने मौका पाते ही पुणे का तोरण दुर्ग अपने कब्जे में कर दिया। और आदिलशाह को संदेश भेज दिया कि अगर दुर्ग वापस चाहिए तो मोटी रकम देनी होगी। उधर आदिल शाह ने शाहजी भोंसलेको अपने पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज पर काबू रखने को कहा।

शाहजी भोंसले को कैद कर दिया। 1641 में शिवाजी ने कोकण और चाकन के दुर्गों पर कब्जा किया।

उस समय शाहजी भोंसले कर्नाटक में थे और वहां उन्हें बंदी बनाया गया था। शिवाजी और आदिलशाह के बीच संधि हुई और 5 वर्ष तक छत्रपति शिवाजी महाराज ने किसी भी किले पर कब्जा नहीं किया और शाहजी को छुड़वाया। शाहजी भोंसले  केरिया होने पर शर्तें लागू थी उसका पालन किया।

भारतवर्ष में छत्रपति शिवाजी महाराज “जाणता राजा के नाम से प्रसिद्ध है

यहां तमाम जानकारी बाबासाहेब पुरंदरे के  राजा शिवाजी छत्रपति काव्य पर आधारित है।

राज्य विस्तार

शाहजी भोंसले के रिया होने की शर्तों का पालन करते हुए बीजापुर के दक्षिण में शक्ति में अपनी ताकत लगाई। लेकिन जावली राज्य रोड़ा कर रहा था। यह सातारा वेस्ट और कृष्णा नदी के आसपास का इलाका था। जावली में युद्ध किया राजा को बंदी बना लिया और सारी संपत्ति पर कब्जा कर दिया।

शास्त्रा खा पर हमला

औरंगजेब  का ध्यान उत्तर से दक्षिण की तरफ गया और छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में जानता था। औरंगजेब ने अपने मामा शास्त्रा खा को जुलाई 1659 को ढक्कन का सूबेदार बनाया

25 फरवरी 1660 को शास्त्रा खा अहमदनगर से  150000 सैनिक के साथ उसे पुणे की तरफ रवाना कर दिया और उसने 3 वर्ष तक पुणे में लूटपाट की।

छत्रपति-शिवाजी-महाराज-sastra-khan-bantiblog.com

मई 1660 में पुणे में तोरण दुर्ग आधिपत्य जमा लिया और चाकन पर भी। छत्रपति शिवाजी महाराज ने सिंहगढ़ दुर्ग { कोंढाणा दुर्ग } में योजना बनाई और 5 अप्रैल 1663 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने शास्त्रा खा पर हमला किया।

शिवाजी एवं मोरोजी पंथ  पेशवा, नेताजी पारकर , चिमनाजी बापूजी , बाबाजी बापूजी एवं अन्य मावले अपना वेश बदलकर दुर्ग में प्रवेश किए और शास्त्रा खा पर हमला किया और वहां से शास्त्रा खा का भाग गया लेकिन उसकी चार उंगली छत्रपति शिवाजी महाराज ने काट दी। मुगल सैनिकों में एक डर का माहौल पैदा हो गया और शिवाजी का गौरव भारतवर्ष में फैलने लगा।

छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा अफजल खान की मौत

छत्रपति शिवाजी महाराज अपनी वीरता और कौशल्या से अपना राज्य विस्तार कर रहे थे। इस कारण आदिलशाह परेशान थे। आदिल शाह ने अपने दरबार में शर्त रखी कि छत्रपति शिवाजी महाराज को जिंदा या मुर्दा मेरे सामने पेश करें। अफजल खान को 10000 की सेना देकर प्रतापगढ़ की तरफ भेजा।

छत्रपति-शिवाजी-महाराज-Afajal-khan-bantiblog.com

अफजल खान  एक क्रूर दरबारी था। उसने तुलजा भवानी मंदिर को लूटा और पंढरपुर का विठोबा मंदिर भी लुटा। अफजल खान ने शिवाजी के पास संदेश भेजा कि वह उनसे मिलना चाहता है। शिवाजी अफजल खान से पूरी तरह से वाकिफ थे कि वह क्रूर और नीति हीन है

उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने गोपी नाथ पंथ के साथ यह प्रस्ताव भेजा कि वह मिलने को तैयार हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज अफजल खान से मिलने से पूर्व लोहे का कवच और सिर पर लोहे की टोपी और हाथ में वाघ नखा डालकर मिलने गए।

दोनों के आपस में बातचीत हुई और एक दूसरे को गले मिले और अफजल खान ने अपने शरीर से शिवाजी को दबोच लिया और खंजर से पीठ में वार किया तभी शिवाजी ने वाघ नखा से अफजल खान के आंतड़े बाहर निकाल दिए और अफजल खान की मृत्यु हो गई । अफजल खान मारा गया या खबर सुनकर सेना तितर-बितर हो गए और बहुत बड़ा नरसंहार हुआ।

Read :- छत्रपति शिवाजी महाराज {भाग-2}

6 thoughts on “    छत्रपति शिवाजी महाराज {भाग-1}”

Leave a Comment