पृथ्वीराज चौहान की जीवनी|युद्ध, मृत्यु, शासन और फिल्म

पृथ्वीराज चौहान की जीवनी|युद्ध, मृत्यु, शासन और फिल्म

चौहान वंश की उत्पत्ति

पृथ्वीराज चौहान के चौहान वंश की उत्पत्ति सम्राट अशोक के समय काल में हुई थी। आबू पर्वत पर ऋषि-मुनियों द्वारा यज्ञ करवाए जाते थे। उस समय वहां राक्षस उन्हें बहुत परेशान करते थे। तब ऋषि यों ने यज्ञ कुंड से 4 राजकुमारों की उत्पत्ति की जिन्होंने यज्ञ की रक्षा की और राक्षसों का वध किया। वे ही 4 राजकुमार परिहार, परमार, सोलंकी और चौहान हुए। कई विद्वानों का मानना है कि चौहान सूर्यवंशी हैं और कई का मानना है कि वह अग्निवंशी है।पृथ्वीराज चौहान की जीवनी

पृथ्वीराज -bantiblog.com
पृथ्वीराज चौहान की जीवनी (पृथ्वीराजतृतीय हिंदुसासक) (राय पिथौरा)
जन्म1168 (गुजरात)
पितासोमेश्वर चौहान
माताकर्पूरादेवी (अनंगदेव तोमर की पुत्री)
धर्महिन्दू धर्म
शासन1177-1192
उत्तराधिकारी (पुत्र)गोविन्द चौहान
पत्नीसंयोगिता, जालंधरी, इंद्रावती, यादवी पद्मावती, यादवी शशिव्रता
छोटा भाईहरीराज चौहान
बहनप्रभा कुमारी 
मित्रचंद्रबरदाई (लेखक, कवि, राजदरबारी)
राष्ट्रीयताभारतीय
मृत्यु11

चौहान का भी उसी चौहान वंश में जन्म हुआ। राजा वासुदेव चौहान वंश के वंशज थे। चौहान जाति राजपूतों में आती है और वह सांभर और आमेर के आसपास क्षेत्र में रहते थे जो जयपुर के आसपास का क्षेत्र हैं। चौहानों की कुलदेवी शाकंभरी देवी है और उनका मंदिर 2500 वर्ष पुराना है। शाकंभरी देवी के नाम से Sambar Salt Lake का नाम रखा गया है।

  चौहान वंश के राजा अजय राज प्रथम ने अजमेर बसाया था। उन्होंने 721 से 734 तक राज्य किया अजय राज को अजय पाल के नाम से भी जाना जाता है। अजय राज के वंश में ही सोमेश्वर चौहान का जन्म हुआ और उनकी फिर संतान हुई उसका नाम पृथ्वीराज था। पृथ्वीराज चौहान का भारत के अंतिम हिंदू राजाओं में उल्लेख आता है।

चौहान का जन्म

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पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 में दिल्ली में हुआ। पृथ्वीराज विजया के अनुसार पृथ्वीराजतृतीय का जन्म ज्येष्ठ मास के 12 वें दिन हुआ था। इस पाठ में उनके जन्म के वर्ष का उल्लेख नहीं हुआ है, लेकिन दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज के जन्म की गणना 1166 CE के रूप में की है। कई लेखकों का मानना है कि उनका जन्म गुजरात के पाटन प्रांत में हुआ। पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर चौहान एवं उनकी माता कर्पूरी देवी ।

चौहान का बाल्यकाल उनके नाना अनंतपाल के राज्य दिल्ली में बीता। आनंदपाल के दरबार में ज्योतिषयो ने यह भविष्यवाणी की यह बालक बहुत बड़े साम्राज्य का शासक बनेगा। अतः इसका नाम पृथ्वीराज रखा गया। पृथ्वी + राज अर्थात पृथ्वीराज।

पृथ्वीराज ने राय पिथौरा किले का निर्माण कराया। इसलिए पृथ्वीराजतृतीयको राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता है।

शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा

चौहान की शिक्षा बाल्यकाल में ही आबू पर्वत पर ऋषि-मुनियों द्वारा शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दी गई। वे बचपन से ही निडर, साहसी, पराक्रमी थे.

चौहान तीरंदाजी, तलवार एवं भाला चलाने में निपुण थे। शब्दभेदी बाण भी वे माहिर थे।

एक समय की बात है कि एक बार चौहान का मुकाबला एक शेर से हुआ। उस समय चौहान के पास कोई शस्त्र नहीं था और उन्होंने निडरता से उस शेर का मुकाबला किया और शेर को अपने बाहुबल से मार गिराया। शब्दभेदी बाण की कला उन्होंने भील राजाओं से प्राप्त की।

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पृथ्वीराज की बहन

चौहान की एक ही बहन थी जिसका नाम प्रभा कुमारी था। 2 भाइयों की एक लाडली बहन थी। जिसका विवाह मेवाड़ के राजा समर सिंह से हुआ। समर सिंह एक प्रतापी बहादुर राजा थे। समर सिंह न केवल पृथ्वीराज के बेहनोई थे अपितु उनके एक सच्चे मित्र भी थे। पृथ्वीराज चौहान की जीवनी समर सिंह ने चौहान के हर युद्ध में सहयोग किया। समर सिंह चौहान के एक विश्वासपात्र मित्र थे।

मोहम्मद गौरी कौन था?

गौर वंश का एक लुटेरा शासक था जिसका नाम मोहम्मद गौरी था। उसकी हमेशा इच्छा थी कि भारतवर्ष को लूट कर गजनी को सोने का प्रांत बनाना। गजनी शहर आज के अफगानिस्तान में आता है वहां मोहम्मद गोरी का जन्म हुआ। मोहम्मद गोरी ने साम्राज्य विस्तार के लिए सर्वप्रथम 1175 में मुल्तान पर कब्जा किया और साम्राज्य विस्तार की शुरुआत की उसका ध्यान उत्तरी भारत पर था।

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मुल्तान के बाद उसने 1178 में अन्हल वाड़ा प्रांत पर विजय प्राप्त की और 1181 में सिंध प्रांत पर भी अपना वर्चस्व जमा लिया 1184 में लाहौर पर फतह हासिल की और साथ ही सियालकोट भी जीत लिया। दिल्ली की सत्ता पाने के लिए उतावला हो रहा था। 1191 में तराइन का युद्ध हुआ

तराइन का  प्रथम युद्ध

तराइन का  प्रथम युद्ध गौरी और चौहान के बीच 1191 में हुआ।राय पिथौरा की एक विशाल सेना ने गौरी की सेना से युद्ध किया। चौहान की सेना में 3,00,000 घुड़सवार 3000 हाथी और अन्य पैदल सेना मौजूद थी। चौहान की सेना के आगे गौरी की सेना टिक न सकी और कई गौरी के सूबेदार और सिपाही मारे गए ।

अंत में गौरी को बंदी बना दिया गया। युद्ध में राय पिथौरा की विजय हुई और गौरी को चौहान के दरबार में पेश किया गया। गौरी ने पृथ्वीराज से जीवन की भीख मांगी। चौहान एक उदारवाद बड़े दिल के सम्राट से उन्होंने मोहम्मद गौरी को जीवनदान दे दिया। इससे पूर्व भी कई बार उसने जीवनदान दे चुके थे। मोहम्मद गौरी चौहान से जीवन दान पाकर सीधा गजनी चला गया और इस हार का बदला लेने के लिए दिन रात योजनाएं बनाना शुरू कर दिया।

तराइन का द्वितीय युद्ध

चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन में 1192 में लड़ा गया युद्ध को तराइन का दूसरा युद्ध के नाम से जाना जाता है। युद्ध में मोहम्मद गोरी पूरी योजना के साथ युद्ध में उतरा था उन्होंने भारत के कई हिंदू राजाओं के अपने साथ में लिया और एक विशाल सेना खड़ी की। उल्लेख में आता है कि भारत के 2 राजपूत राजा मोहम्मद गोरी से मिले हुए थे जिसमें 1 नाम जयचंद का आता है। जयचंद चौहान के सबसे बड़े दूश्मन में से एक थे और वे कन्नौज के राजा थे।

जयचंद का चौहान से दुश्मनी के मुख्य दो कारण थे एक दिल्ली का सम्राट बनना और दूसरा जयचंद की पुत्री संयोगिता से उनकी  मर्जी के बिना गंधर्व विवाह करना। इसका  प्रतिशोध लेने के लिए गौरी का साथ दिया ।जयचंद ने मोहम्मद गौरी का अपनी विशाल सेना के साथ साथ दिया ।

बहुत ही भयंकर युद्ध हुआ अंत में राय पिथौरा को हार का मुंह देखना पड़ा और उसे बंदी बना दिया गया। इस युद्ध में राय पिथौरा के तीन मुख्य योद्धा भी मारे गए जिनके नाम चामुंडराय, कान और कयमास थे। अंत में चौहान को बंदी बनाकर गजनी ले गया । जहां पर कारागार में चौहान की दोनों आंखें फोड़ दी गई।

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 संयोगिता का विवाह

कन्नौज के राजा जयचंद के एक पुत्री थी उसका नाम संयोगिता था।सयोगिता और चौहान दोनों आपस में प्रेम करते थे। यह जयचंद को कतई पसंद नहीं था। चंद्रवरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो में संयोगिता और चौहान के प्रेम संबंधों का विस्तृत उल्लेख किया गया है ।

जयचंद ने सयोगिता के विवाह का स्वयंवर रचाया जिसमें भारतवर्ष के समस्त राजपूत राजाओं को बुलाया। चौहान को निमंत्रण नहीं भेजा गया। जयचंद के सबसे बड़े दुश्मन में से एक है  वे ।अतः उनकी बदनामी करने के लिए उनको निमंत्रण नहीं भेजा गया। स्वयंवर में समस्त भारतवर्ष के राजा पधारे और चौहान का पुतला उनके द्वारपाल के रूप मे स्वागत के लिए स्थापित किया ।

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संयोगिता के हाथ में वरमाला दी गई तो उन्होंने समस्त राजपूत राजाओं को छोड़कर द्वार पर खड़े राय पिथौरा के पुतले को वरमाला पहना कर उसको अपने पति के रूप में स्वीकार किया। इस घटना से समस्त राजा भी नाराज हुए और जयचंद भी नाराज हुआ।

कुछ ही पल में चौहान उस स्वयंवर में आए और संयोगिता को गंधर्व विवाह करके ले गए और हमेशा के लिए अपनी पत्नी बना दिया। संयोगिता के 1 पुत्र रतना भी हुआ जिसका नाम गोविंद चौहान रखा । संयोगिता का  विवाह ही एक मुख्य कारण था कि जयचंद राय पिथौरा का सबसे बड़ा दुश्मन बना और गौरी के साथ जा मिला ।

जीवनी के काव्य

पृथ्वीराज के जीवनी के कई कार्यों में उल्लेख मिलता है उसमें से 

1. पृथ्वीराज रासो 

जो कवि चंद्रवरदाई ने लिखी

2. ताज उल मासिर 

हसन निजामी ने लिखा

3. हमीर महाकाव्य

नयनचंद्र सूरी ने लिखा

राय पिथौरा का उल्लेख करने वाले अन्य वृत्तांत और ग्रंथों में प्रबन्ध चिंतामणि, प्रबन्ध कोष और पृथ्वीराज प्रबन्ध शामिल हैं। उनकी मृत्यु के सदियों बाद इनकी रचना की गई थी और इसमें अतिशयोक्ति और काल दोष वाले उपाख्यान हैं।

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चौहान के हाथों गौरी की मृत्यु

चौहान द्वारा मोहम्मद गौरी का वध करना यह एक महत्वपूर्ण घटना हैं इस का जिक्र पृथ्वीराज रासो में किया गया है जिसे कवि चंद्रवरदाई ने लिखी थी। समय की बात है जब गौरी राय पिथौरा को गजनी बंदी बना कर ले गया और 1 दिन दरबार में पेश किया गया। चौहान शेर जैसी आंखों से गौरी को देख रहा था यह गोरी को अच्छा नहीं लग रहा था।

तब गौरी ने कहा राय पिथौरा आंखें नीचे करके बात कर । तभी चौहान ने अपने ही अंदाज में जवाब दिया कि मैं एक राजपूत हूं और राजपूत की आंखें कभी जूकेगी नहीं। क्या सुनकर गौरी आग बबूला हो गया और उसने चौहान की आंखों में लोहे की गर्म सलाखे डाल दी और चौहान की हमेशा के लिए आंखों की रोशनी खत्म हो गई ।

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यह समाचार सुनकर दुखी मन से चंद्रवरदाई गजनी की तरफ प्रस्थान किए। उन्होंने गौरी से मुलाकात की और चौहान की तीरंदाजी में शब्दभेदी  बाण कला का बखान किया। गौरी को एक प्रतियोगिता रखने के लिए राजी कर दिया। यह सुनकर मोहम्मद गोरी शब्दभेदी बाण चलाने की विद्या देखने के लिए उतावला हो रहा था।

उन्हें यह ताजुब हो रहा था कि अंधा कैसे तीर चला सकता है। फिर चंद्रवरदाई और राय पिथौरा ने एक योजना बनाई गौरी को मारने की ।

गौरी ने चौहान को प्रतियोगिता में पेश किया और उसके हाथ में धनुष थमा दिया। चौहान ने चंद्रवरदाई से कहां हे मित्र मुझे एक धनुष और दो बार दीजिए। चंद्रवरदाई ने कहा, हे राजन आपको एक ही अवसर मिलेगा। बरदाई ने मोहम्मद गौरी को तीन बार आदेश देने के लिए कहा।

जब एक बार गोरी ने कहा चौहान तीर चलाओ। तब चंद्रवरदाई ने चौहान से कहा हे राजन, शब्द सुना गौरी का कौन दिशा में है सिंहासन? चंद्रवरदाई ने व्यंग में कहा हे राजन, एक बाण राजन, एक बाण चौहान, एक बाण राम ने रावण को भेदा, अर्जुन ने करण को छेदा, एक बाण चौहान घमंड लक्ष्मण से हारा, एक बाण वीर पुरुष को भला, पाते ही संकेत राजन तीर चला।

चंद्रवरदाई के यह शब्द सुनकर चौहान के अंदर उर्जा संचार होने लगी। फिर चंद्रवरदाई बोले, “हे राजन:- कमान बांध, छोड़ निराशा, आत्मशक्ति भर और ध्यान कर, जो कुछ तुमने कहां मुझे उसको पूरा कर, मत चुके चौहान, प्राण अंजलि में लेकर कर दे तू नि:शब्द, शब्द को शब्द भेद कर, हैं अंतिम अवसर यही, सुन दे कर तुम ध्यान, एक बाण से लक्ष्य कर, मत चूके चौहान।“

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण

ता उपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।।

जैसे ही मोहम्मद गौरी ने चौहान को बाण चलाने का आदेश दिया तो पृथ्वीराज ने शब्दभेदी बाण से गौरी का सीना भेद दिया। गौरी की मृत्यु हो गई और फिर चंद्रवरदाई ने अपने स्वामी को खंजर से मारा और फिर स्वयं ने आत्महत्या कर दी। इस तरह चंद्रवरदाई ने एक सच्ची मित्रता की एक मिसाल खड़ी की।

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पृथ्वीराज के जीवन के युद्ध

 शुरुआती दौर में गुजरात के चालुक्य राजाओं पर हमला किया एवं अन्य आसपास के छोटी छोटी रियासतों पर हमला कर अपना स्वामित्व स्थापित किया। चौहान ने गुजरात के भीमदेव राजा को युद्ध में परास्त किया। जी राज ने मोहम्मद गोरी को के साथ 17 बार युद्ध किया जिसमें 16 बार उसने मोहम्मद गोरी को जीवनदान दिया। जयचंद को भी युद्ध में पराजित किया। 1178 से1192 तक शासन किया।

सम्राट पृथ्वीराज फिल्म का नाम क्यों रखा?

यशराज की फिल्म सम्राट पृथ्वीराज के रिलीज होने से पूर्व राजपूत और गुर्जर समुदाय में एक विवाद चला कि पृथ्वीराज चौहान उनके वंशज हैं। यह बात हाई कोर्ट तक पहुंच गई। यशराज फिल्म मेकर्स को नोटिस भेजा और उनसे जवाब मांगा यशराज फिल्म ने इस फिल्म को न्यूट्रल जाती फिल्म घोषित की और उन्होंने यह दावा किया कि इस फिल्म में कहीं भी जाति सूचक शब्द उपयोग में नहीं लाया जाएगा। इसलिए यशराज मेकर्स ने इस फिल्म का नाम “सम्राट पृथ्वीराज” रखा।

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